अकेलेपन की आहट: एक मार्मिक कहानी
रमेश चंद, एक बूढ़ा आदमी, मेरठ के एक छोटे से, जर्जर घर में अकेला रहता था। उसकी उम्र के निशान उसके चेहरे की झुर्रियों और हाथों की उभरी हुई नसों में साफ़ झलकते थे। उसकी आँखें, जो कभी शरारत और जीवन से भरी होती थीं, अब धुंधली और उदास रहती थीं। हर सुबह, वह उसी पुराने खाट पर उठता, सूरज की पहली किरण को अपने कमरे में दाखिल होते हुए देखता, और फिर एक गहरी साँस लेता, मानो एक और अकेले दिन का बोझ उठा रहा हो।
अकेला वृद्ध व्यक्ति अपने कमरे में उदास बैठा है" src="https://example.com/image1.jpg" />एक अकेला वृद्ध व्यक्ति अपने कमरे में उदास बैठा है, उसके हाथ में एक पुरानी तस्वीर है।
उसका कमरा उसकी ज़िंदगी का आइना था - साधारण और अस्त-व्यस्त। एक टूटी हुई कुर्सी, एक पुराना लकड़ी का मेज़ जिस पर धूल की मोटी परत जमी हुई थी, और एक दीवार जिस पर कभी रंग हुआ करता था, लेकिन अब वह फीका पड़ चुका था। कमरे के एक कोने में, एक संदूक रखा था, जिसमें रमेश की यादें कैद थीं - पुरानी तस्वीरें, कुछ पत्र, और एक रेशमी दुपट्टा जो उसकी पत्नी, सरला का था।
सरला... उसका नाम रमेश के होंठों पर एक अनसुनी प्रार्थना की तरह तैर जाता था। वे पचास साल से साथ थे, सुख-दुख के हर पल में एक-दूसरे के साथी। सरला की हँसी उसके घर में गूंजती थी, उसकी गर्मजोशी उसके दिल को सुकून देती थी। लेकिन अब, वह सब सिर्फ यादें थीं, धुंधली तस्वीरें जो समय के साथ और फीकी पड़ती जा रही थीं।
आज भी, रमेश ने संदूक खोला और सरला की तस्वीर निकाली। वह एक युवा और हँसती हुई लड़की थी, जिसकी आँखों में चमक थी और चेहरे पर भोलापन। रमेश ने अपनी उंगलियों को धीरे से तस्वीर पर फेरा, मानो वह सरला के गालों को छू रहा हो। उसकी आँखें नम हो गईं।
"तुम याद आती हो, सरला," उसने फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में दर्द और अकेलापन था। "यह घर... यह अब घर नहीं रहा। तुम्हारे बिना सब सूना है।"
रमेश को याद आया जब वे पहली बार मिले थे। वह गाँव के मेले में पतंग उड़ा रहा था, और सरला अपनी सहेलियों के साथ आई थी। उनकी पतंगें आपस में उलझ गईं, और उनकी आँखें मिलीं। उस पल, जैसे समय थम गया था। उनकी प्रेम कहानी उसी उलझी हुई पतंग की डोर की तरह धीरे-धीरे बुनी गई, मजबूत और अटूट।
>एक युवा जोड़ा गाँव के मेले में पतंग उड़ाते हुए खुशी के पल साझा कर रहा हैउनकी शादी धूमधाम से हुई थी। मेरठ के उस छोटे से गाँव में उनका प्यार एक मिसाल था। उन्होंने साथ में खेत में काम किया, हँसे, लड़े, और हर मुश्किल का सामना एक-दूसरे के साथ किया। उनके दो बच्चे थे, बेटा रवि और बेटी रानी। उनके छोटे से घर में हमेशा खुशियों का मेला लगा रहता था।
लेकिन समय का पहिया घूमता रहा, और खुशियाँ धीरे-धीरे कम होने लगीं। पहले रवि, काम की तलाश में शहर चला गया, और फिर रानी, शादी करके अपने ससुराल चली गई। रमेश और सरला फिर से अकेले रह गए, लेकिन उनके पास एक-दूसरे का साथ था, जो हर अकेलेपन को दूर कर देता था।
फिर वह भयानक दिन आया, जब सरला बीमार पड़ गई। डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की, लेकिन वे उसे बचा नहीं सके। सरला ने रमेश का हाथ अपने हाथों में लिया और अपनी आखिरी साँसें उसके सामने छोड़ दीं। उस दिन, रमेश की दुनिया उजड़ गई।
सरला के जाने के बाद, रमेश बिल्कुल अकेला पड़ गया। बच्चे कभी-कभार आते थे, लेकिन उनकी अपनी दुनिया थी, अपनी परेशानियाँ थीं। रमेश उन्हें दोष नहीं देता था, लेकिन अकेलापन उसे अंदर ही अंदर खाता रहता था।
वह हर दिन सरला की यादों के सहारे जीता था। कभी वह उनकी पहली मुलाकात को याद करता, कभी उनकी शादी के दिन को, कभी बच्चों के बचपन की शरारतों को। हर याद उसकी आँखों में आँसू ला देती थी, लेकिन वह उन यादों को छोड़ना नहीं चाहता था। वे ही तो उसकी ज़िंदगी की जमा-पूँजी थीं।
आज, रमेश ने फैसला किया कि वह उस बरगद के पेड़ के नीचे जाएगा, जहाँ वे अक्सर शाम को बैठकर बातें करते थे। वह धीरे-धीरे उठा, अपनी लाठी उठाई, और घर से बाहर निकल पड़ा। रास्ते में, उसे कई लोग मिले, कुछ ने उसे नमस्ते किया, कुछ ने अनदेखा कर दिया। रमेश ने सबकी ओर फीकी मुस्कान फेंकी और आगे बढ़ता रहा।
बरगद का पेड़ गाँव के बाहर एक ऊँची जगह पर खड़ा था। रमेश धीरे-धीरे चलकर वहाँ पहुँचा और पेड़ के नीचे बैठ गया। ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी, और पत्तों की सरसराहट उसे सरला की आवाज़ की तरह लग रही थी।
उसने अपनी जेब से सरला की तस्वीर निकाली और उसे देखने लगा। सूरज डूब रहा था, और आसमान में नारंगी और बैंगनी रंग फैल रहे थे। रमेश को लगा जैसे सरला भी उसी रंग में रंगकर उसे देख रही हो।
"सरला," उसने फिर फुसफुसाया, उसकी आवाज़ में अब दुख के साथ थोड़ी शांति भी थी। "मैं जानता हूँ कि तुम मुझे देख रही हो। मुझे पता है कि तुम हमेशा मेरे साथ हो।"
उसने तस्वीर को अपने सीने से लगा लिया और आँखें बंद कर लीं। उस पल, उसे अकेलापन महसूस नहीं हुआ। उसे लगा जैसे सरला का हाथ उसके कंधे पर रखा हो, जैसे उसकी हँसी हवा में गूंज रही हो।
रमेश जानता था कि ज़िंदगी आगे बढ़ती रहेगी, चाहे कुछ भी हो जाए। उसे अपनी बाकी की ज़िंदगी भी सरला की यादों के साथ जीनी थी, उसके प्यार को अपने दिल में संजोकर रखना था। और शायद, एक दिन, वह फिर से सरला से मिलेगा, किसी और दुनिया में, जहाँ कोई अकेलापन नहीं होगा, सिर्फ प्यार और खुशियाँ होंगी।
सूरज पूरी तरह से डूब चुका था, और आसमान में तारे टिमटिमाने लगे थे। रमेश अभी भी बरगद के पेड़ के नीचे बैठा था, सरला की तस्वीर को अपने सीने से लगाए हुए। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन इस बार उन आंसुओं में सिर्फ दुख नहीं, बल्कि प्यार और उम्मीद भी थी। वह अकेला था, लेकिन वह जानता था कि वह कभी भी सच में अकेला नहीं रहेगा, क्योंकि सरला हमेशा उसके दिल में रहेगी।
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